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________________ रही तो बुनियादी धातुएँ, ऊर्जा शक्ति, बेशकीमती जगल और वनस्पतिया, खनिज पदार्थ चार-छह दशकों में ही कीं बोल जायेंगे। आसंका यह है कि शायद बहुत सीत्र अनगिनत वास्तुणों के समुद्र मे तैरने वाले इस मनुष्य को पृथ्वी के कडे धरातल पर वस्तु-हीन होकर जीने के लिए बाध्य होना पडे । उपभोग पर टिका जीवन स्तर । यो अभी यह विज्ञान की चर्चा का विषय है। आम मनुष्य को यह एहसास नहीं है कि वह अपने जीवन के एक नाजुक दौर से मुजर रहा है। उसकी जरूरतें सीमाहीन हैं और यह उसकी कल्पना से बाहर है कि वह उसके बिना भी जी सकता है । अभी तो उसे और चाहिए। एक ऐसा स्टेन्डर्ड-जीवन-स्तर जिसमें उसे कुछ करना ही न पडे और कल्पवृक्ष की तरह उसकी मुरादें पूरी होती चली जाएं। जो बहलता की पक्ति पार कर चुके हैं उन्हें भी और चाहिये, जो गरीबी की रेखा (पॉवर्टी लाइन) के नीचे हैं उनके शरीर को तो चाहिए ही। जो भी हो, भोगते-भोगते मनुष्य वस्तुओ के, धन के, अधिकार के, हुक्मत के और यशोगान के जिस शिखर पर चढ़ा हुआ है 'जीवन' उससे बहुत पीछे छूट गया है। मनुष्य के हाथ अशाति आयी है, क्रूरता आयी है-समाज मे पशुता बढी है, हिसा फैली है और दुनिया अपने कीमती, आरामदेह, सुविधाजनक और गुदगुदाने वाले जीवन-स्तर के बावजद अधिक बेचैन है, भयभीत है और दुःखी है। __उच्च स्तर का जीवन जीने की आशा से मनुष्य ने अपनी आवश्यकताएँ बढाई, ढेर सारे उपकरण बनाये, और इसमें विज्ञान का भरपूर सहारा लिया। उसकी सारी हिकमत और सारा तकनीक इस बात मे लगा है कि वह एक स्तर का स्टेन्डर्ड का जीवन जी सके । जिन्होने एक स्टेन्डर्ड पा लिया है, वे अपनी दोनो भुजाओ से उसे थामे हुए है, कही किसी झक मे वह हाथ से खिसक न जाए | जिसने नहीं पाया है स्टेन्डर्ड, वह चौबीसो घटे इसी राम-भजन मे लगा है कि काश!, उसे स्टेन्डर्ड मिल जाए, लेकिन ४८
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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