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________________ प्रामुख 'महावीर जीवन मे ?' श्री माणकचन्द कटारिया की एक ऐसी अप्रतिम कृति है जो यद्यपि उनकी सर्वप्रथम कृति है तथापि इन दिनो डरें पर छप रही पुस्तको से बिल्कुल जुदा किस्म की है। इसमे लेखक ने खुद को आत्मनिरीक्षण के निकष पर डाला है और चली आती परम्परा को तौल-परख के लिए न्योता है । अठारह लेखों के इस लघुकाय सकलन में जहाँ एक ओर मर्मी लेखक ने परम्परा परीक्षण की बहसो मे कुछ अहम सवाल उठाये हैं, वही दूसरी ओर उसने आधुनिको की अतिवादी वृत्ति को भी करारी चुनोतियाँ दी हैं । वह अपने समीक्षण मे परीक्षण से कहीं अधिक कठोर, निर्मम, प्रखर और वस्तुपरक रहा है । इन लेखो की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन्हें परम्परा और आधुनिकता में आस्था रखनेवाली समान्तर शक्तियो ने समान रुचि, स्नेह, उत्कण्ठा और विश्वास के साथ पढा-सराहा है । जहाँ परम्परा ने इनके माध्यम से खुद में गुजरने की प्रक्रिया को अगीकार किया है, वहाँ आधुनिको ने इनके द्वारा परम्परा को जहा वह इस योग्य है अस्वीकार करने से इन्कार नही किया है। इसे हम लेखक की अमोघ उपलब्धि कहेंगे कि वह अपने युग के पेचीदा सदर्भों को सरल भाषा, सुगम विश्लेषण और सुबोध शैली मे रख सकने मे सफल हुआ है ।
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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