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________________ से अलग कुछ और चीज है। ईसा मसीह ने तो यहा तक कह डाला कि 'सुई की नोक में से ऊंट का निकलना संभव है, लेकिन धनप्रति के लिए स्वर्ग अप्राप्य है।' वे बहुत कडवा सत्य कह गये- फिर भी मनुष्य की आस्था धन-सम्पदा सत्ता पर से नही उठी, बल्कि अधिक दृढ हुई है । आत्मा के गुण जैसे-जैसे शरीर-बल के मुकाबिले आत्मबल की श्रेष्ठता साबित हुई हमारे मनोषियो ने आत्मा के गुण खोजे और यह स्वीकारा कि मनुष्य अपनी मित्रता सादगी, सयम, अपरिग्रह, निर्वैर, क्षमा, प्रेम आदि सद्गुणो से रखेगा और उन्हें आचरण में उतारेगा तभी वह पशुता से बाहर आ सकेगा । कमोवेश सब धर्मों के सब धर्म-गुरु इसी नतीजे पर पहुचे हैं और अब यह सर्वमान्य frष्कर्ष है कि मनुष्य का आधार उसकी आत्मा है, शरीर नही । आत्मा को ऊंचाई देने वाले गुण खोजे जा चुके हैं और उस सम्बन्ध मे कोई दो रायें नही हैं। फिर भी मनुष्य आत्मोदय की आराधना से हटकर शरीर की सुख-सुविधा जुटाने में ही लगा हुआ है। जिसके पाम सुख-सुविधा के साजो-सामान जुट गए है, वह तो अपना भाग्य सराहता ही है, जिसके पास नहीं हैं वह अपने भाग्य की हीन-दशा से उबरने की कोशिश में लगा है। साथ ही, भीतर-ही-भीतर ललचायी आंखो से दूसरो के भाग्योदय को देखता रहता है-इस ऊहापोह मे अनजाने ही या तो ईर्ष्या को पालता है या होन-प्रथि का पोषण करता है । मनुष्य की खोज आत्मबल की हिमायती है । आत्मा का साथ देने [ वाले सद्गुणो का गुणगान हमारे धर्म-यथ और नीति-यथ करते है । हमारे सारे आराध्यदेव सम्पदा के नही, त्याग के प्रतीक है। हमने अपनी-अपनी आराधना का आधार करुणा, दया और सदाचारी वृत्ति को माना है । साथ ही, मनुष्य जीवन की यह रीढ अच्छी तरह समझी गयी है, परखी गयी है। पूरे जीवन मनुष्य यह कहता रहता है कि अन्ततोगत्वा जाना उसे जीवन मे ? २९
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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