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________________ से एकदम अलग शब्द है। ध्यान से कोई जुड़ा है। मैं ध्यान करता है तो मेरे ध्यान में कोई और है। पर अपनी ही बात्मा में लीन होने की प्रक्रिया है 'सामायिक-यह महावीर की खोज है । लेकिन शर्त यह है कि आप 'प्रतिक्रमण करे । बाहर के सम्बन्धो से छूट कर अपने भीतर लोटे। अब हो उल्टा रहा है। मनुष्य बाहर से तो छ्टता नहीं, 'सामायिक' करने लगता है, इसलिए केवल ध्यान तक पहुंचता है। ध्यान किसका करेगा, वहा भी तो बाहर का ससार बैठा है। . और यो वह अपने ही भीतर नहीं जा पाता, क्योकि वहा जगह नही है। ससार के सारे प्रतिमानो (परछाइयो) से आत्मा घिरी है। नतीजा यह है कि मन्दिर मे जाकर, ध्यान पर बैठ कर, माला फेर कर, पूजा-पाठ मे लग कर भी मनुष्य अपने आस्म-तत्त्व से दूर है। __ महावीर कहते है कि आत्मबोध के बिना दृष्टि नही आयेगी। दर्शन पहली सीढी है, ज्ञान और चरित्र इसके बाद की सीढिया है, परन्तु श्रावको का और साधुओ का भी सारा जोर चरित्र पर चला गया है। चरित्र के कुछ फारमूले बन गये हैं। ऐसा-ऐसा करोगे तो श्रावक रहोगे। ऐसा-ऐसा करोगे तो साधु माने जाओगे। हमारी अहिंसा ने रसोईघर सम्हाल लिया है और करुणा ने दया का रूप ले लिया है। हमारे बहुत से 'डू नॉटस' (निषेध) हैं यह मत करो, यह मत खाओ आदि, आदि । हमे खब दया आ रही है-वनस्पति से लेकर प्राणियो तक हमारी जीव-दया चल रही है। पर महावीर रसोईघर की अहिंसा की बात कर ही नहीं रहे-वे उस अहिंसा की बात कर रहे जो आत्मदर्शी है। जो सारी सृष्टि में आत्म-तत्त्व देखती है। वे उस करुणा की बात कर रहे जो पूरी सृष्टि से जुड़ी है । आप दुखी हैं इसलिए दया करूगा, आप गरीब है इमलिये मेरी दया उपजेगी, आपको चाहिये तो मैं दंगा-यह महावीर की करुणा नही है। महावीर की करुणा मनुष्य के जीवन की एक चेतना है। आत्मबोध के बाद मै कुछ कर सकता हूँ, तो करुणा ही कर सकता हूँ, कुछ जी सकता हूँ तो अहिंसा महावीर
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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