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________________ वर्द्धमान का मुक्ति-मार्ग निर्वाण कोई फिनामिना-चमत्कार नहीं है, एक प्रक्रिया है । उसका सम्बन्ध जीवन से है, मृत्य से नहीं। वह मुक्ति का अतिम चरण है, एक ऐसी अवस्था जब शरीर और आत्मा एकमेव हो जाते है। आत्मा और शरीर महज जुदा-जुदा हो, एक-दूसरे से छूट जाएँ तो उसे हम मृत्यु कहते हैं। और मात्र मृत्यु से अगर मुक्ति मिलती हो तो फिर आत्महत्या से ही काम चल जाएगा। एक-एक भूकम्प से हजारो को मुक्ति मिल जाएगी। महायुद्धो से अब तक कितनो का ही निर्वाण हो गया होता। पर ऐसा होता नही—मत्यु और मुक्ति दो अलग रास्ते हैं। जो जीता है वही मुक्ति के द्वार भी खोलता है और खोलते-खोलते जब वह सारे द्वार खोल चका होता है, अपने सारे बन्धन काट चुका होता है तब वह निर्वाण-पद को प्राप्त करता है। महावीर ने वही किया। उसने जीवन जीया और इस तरह जीया कि वह मुक्त होता गया और अन्तमे देह के बन्धन से भी १२ महावीर
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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