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________________ के भरोसे उसने अहिंसा धर्म स्वीकारा है । फिर वह उसके हाथ लगा क्यो नही ? आपकी तरह मैं भी इस प्रश्न का उत्तर खोजना चाहता हूँ । कही ऐसा तो नहीं कि छोटी-छोटी हिंसायें तो हमने बचा ली और बडी-बडी विनाशकारी हिंसाओ से हम जुडते चले गये है ? मैं बहुत ममता के साथ गाय को घास खिला रहा हूँ और पैर में लचीले कॉफ शू ( बछडे के मुलायम चमडे से बने जूते पहने । पीने का पानी छानकर लेता हूँ और मेरे कारखाने का विषैला पानी मीलो तक मछलिया नष्ट किये जा रहा है । मैं अनाज और भाजी के शोधन मे लगा हूँ, पर मेरी कीटनाशक दवाइयो ने अरबो कीट-पतंगो को स्वाहा कर दिया है। उस मौन से क्या होगा जो आप थोडी देर के लिए 'ओम् शाति शाति' या 'आमीन' बोलकर प्रार्थना भवनो मे साध रहे है -- उधर तो मनुष्य ने पूरी सृष्टि को कोलाहल ही कोलाहल दे दिया है । इतना शोरगुल कि आपका गुस्सा आपके काबू से बाहर है। प्रेम के बदले मनुष्य के पल्ले चिडचिडाहट आयी है । आपने कभी जाना कि जो सोना वीतरागी मूर्ति का छत्र बनकर शोभायमान है और हर परिवार के लिए श्री और समृद्धि का चिह्न है, उसमे कितने-कितने मनुष्यो की हत्या शरीक है खनिज वैज्ञानिक के आकडे बोलते है कि औसतन एक तोला सोने के पीछे एक मनुष्य का बलिदान स्वर्ण खदानो ने लिया है । हमे रासायनिक कपास ( सिन्थेटिक फाइबर) से बने चिकने कपडे बहुत भले लग रहे है, लेकिन उनके निर्माण मे जो मलबा धरती की छाती पर फैल रहा है उससे वह निर्जीव बनती जा रही है । हमने अपने जीवन को समृद्ध, साधन-सम्पन्न, आरामदेह और गतिपूर्ण (फास्ट) बनाने की धुन में जिस सभ्यता को स्वीकार किया है उसके तार हिसा से, बल्कि सहारक हिंसा से जुड़े हैं । ? मनुष्य को अपने लिए, अपने आसपास के सम्पूर्ण प्राणिजगत् के लिए और समूची सृष्टि के लिए बहुत-बहुत प्यार और करुणा की जरूरत है । १२६ महावीर
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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