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________________ - ३ - जा गिरता है या फिर सदाचार को विल्कुल तिलाञ्जलि दे ‘परम स्वतन्त्र' हो विचरता है। पृ० १३ आँख से रूप देखता है-वास्तव मे आँख तो केवल एक साधन है। चक्ष-विज्ञान द्वारा आँख की देखने की शक्ति को साधन वना देखने की क्रिया होती है। - पृ० १७. निर्वाण-इसी गरीर मे राग-द्वेप आदि चित्त-मलो का नष्ट होना क्लेश-निर्वाण ओर क्लेश-रहित अर्हत् की मृत्यु होने पर भविष्य में उसके जन्म की सम्भावना के नष्ट होने का नाम स्कन्ध-निर्वाण है इस प्रकार निर्वाण के दो भेद किये जाते है। पृ० १८ आयतन-अस्तित्व । पृ० १६ सम्यक्-दृष्टि-यथार्थ-ज्ञान यथार्थ-समझ। यथार्थ-ज्ञान के विना कोई भी सत्कार्य नही हो सकता। इसीलिए अप्टागिक मार्ग में सम्यक्-दृष्टि को प्रथम स्थान मिला है। विस्तार के लिए देखो पृ० २१ सम्यक् सकल्प-यथार्थ-ज्ञान के अविरोधी सकल्प। प्रत्येक सदविचार मे आर्य अप्टागिक-मार्ग के कम से कम चार अग अवश्य रहते है-(१) सम्यक् सकल्प, (२) सम्यक् व्यायाम, (३) सम्यक् स्मृति, (४) सम्यक् समाधि। सम्यक् कर्मान्त-दुष्कर्मों से बचना। सम्यक् व्यायाम-ग्रहण की हुई बुरी आदतो को छोडने, न ग्रहण की हुई बुरी आदतो को न ग्रहण करने, न ग्रहण की हुई अच्छी आदतो को ग्रहण करने ओर ग्रहण की हुई अच्छी आदतो को जारी रखने मे जो मानसिक प्रयत्न करना पडता है, यही सम्यक् व्यायाम है। सम्यक् स्मृति-स्मृति का अर्थ प्राय याददाश्त स्मरण-गक्ति लिया जाता है। लेकिन यहाँ स्मृति का अर्थ है जागरूकता। (Pre
SR No.034090
Book TitleBuddh Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahasthavir Janatilok
PublisherDevpriya V A
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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