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________________ इस प्रकार भिक्षुओ, भिक्षु वेदनाओ में वेदनानुपश्यी हो विहरता है। भिक्षुओ, भिक्षु चित्त में चित्तानुपश्यी हो कैसे विहरता है ? भिक्षुओ, भिक्षु स-राग चित्त को जानता है कि यह स-राग चित्त है। राग-रहित चित्त को जानता है कि यह राग-रहित है। स-द्वेप वित्त को जानता है कि यह स-द्वेप है। उप-रहित चित्त को जानता है कि यह उपरहित है। स-मोह (=मूढता) चित्त को जानता है कि यह स-मोह है। मूढता-रहित चित्त को जानता है कि यह मूढता-रहित है। स्थिर चित्त को जानता है कि यह स्थिर है, चचल चित्त को जानता है कि यह चचल है। महापरिमाण (=महद्गत)-चित्त को जानता है कि यह महद्गत चित्त है, अमद्गत-चित्त को जानता है कि यह अ-महद्गत है। स-उत्तर चित्त को जानता है कि यह स-उत्तर है। अनुत्तर (=उत्तम) चित्त को जानता है कि यह अनुत्तर है। एकाग्र चित्त (=समाहित) को जानता है कि यह एकाग्र है। एकाग्नता-रहित चित्त को जानता है कि यह एकाग्रता-रहित है। विमुक्त चित्त को जानता है कि यह विमुक्त है। अ-विमुक्त चित्त को जानता है कि यह अ-विमुक्त है। ___इस प्रकार भीतरी चित्त मे चित्तानुपश्यी हो विहरता है। वाहरी चित्त मे चत्तानुपश्यी हो विहरता है। भीतर-वाहर चित्त मे चित्तानुपश्यी हो विहरता है। चित्त मे उत्पत्ति (-धर्म) को देखता है। चित्त मे वय (= धर्म) को देखता है। चित्त मे उत्पत्ति-वय (=धर्म) को देखता है। "चित्त है' करके इसकी स्मृति ज्ञान और प्रति-स्मृति की प्राप्ति के लिए उपस्थित रहती है। वह अनाश्रित हो विहरता है। लोक मे किसी भी वस्तु को (मै, मेरा करके) ग्रहण नहीं करता। इस प्रकार भिक्षुओ, भिक्षु चित्त मे चित्तानुपश्यी हो विहरता है। भिक्षुओ, भिक्षु धर्मों (=मन के विपयो) मे कैसे धर्मानुपश्यी विहरता है?
SR No.034090
Book TitleBuddh Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahasthavir Janatilok
PublisherDevpriya V A
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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