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________________ म. १ २४ मन ' शील- व्रत - परामर्श से युक्त होता है उसका मन काम वासना से युक्त होता है उसका मन क्रोध से युक्त दृढ हो कर उसे पतन की ओर ले जाने वाला वन्धन वन जाता है । होता है उसका क्रोध वह यह नही जानता कि उसे किन बातो को मन मे स्थान नही देना चाहिये, और किन बातो को मन मे स्थान देना चाहिये । इस लिए वह जिन वातो को मन मे स्थान नही देना चाहिये, उन वातो को मन मे स्थान देता है और जिन बातो को मन मे स्थान देना चाहिये उनको मन मे स्थान नही देता । 4 - वह नामुनासिव ढंग से विचार करता है - 'मैं भूत-काल मे था कि नही था ? मै भूत-काल मे क्या था ? मैं भूत-काल मे कैसे था ? मैं भूत-काल क्या होकर फिर क्या क्या हुआ ? मे भविष्यत् काल मे होऊँगा कि नही होऊंगा ? मैं भविष्यत् काल मे क्या होऊँगा ? में भविष्यत् काल मे कैसे होऊँगा? मैं भविष्यत् काल मे क्या होकर क्या होऊँगा ?" अथवा वह वर्तमान-काल के सम्वन्ध मे सन्देह - शील होता है - " मैं हूँ कि नही हूँ ? मैं क्या हूँ? मैं कैसे हूँ ? यह सत्व कहाँ से आया? यह कहाँ जाएगा उसके इस प्रकार नामुनासिव ढंग से विचार करने से उसके मन मे इन छ दृष्टियो (तो) मे से एक दृष्टि घर कर लेती है। या तो वह इस वात को सच समझता है (१) "मेरा आत्मा है," या वह इस वात को सच समझता है (२) "मेरा आत्मा नही है", या तो वह इस वात को सच समझता है कि (३) “मैं आत्मा' से आत्मा को पहचानता हूँ," या वह इस बात को सच समझता है कि (४) "मैं अनात्मा से आत्मा को पहचानता हूँ," अथवा उसकी ऐसी दृष्टि होती है (५) जो "आत्मा" कहलाता है यह ही अच्छे बुरे कर्मों के फल का भोगने वाला है तथा (६) यह आत्मा नित्य है, ध्रुव है, शाश्वत है, अपरिवर्तन-शील है, जैसा है वैसा ही (सदैव ) रहेगा - भिक्षुओ, यह सब केवल मूर्खता ही मूर्खता है । भिक्षुओ, इसे कहते है मतो मे जा पडना, मतो की गहनता, मतो का - ܕ ܕ
SR No.034090
Book TitleBuddh Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahasthavir Janatilok
PublisherDevpriya V A
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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