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सतरहभेदी-पूजा - ॥ राग सामेरी ॥ । ', पूजोरी माई, जिनवर अग सुगंधै | जि० ॥ ३० ॥ गधाटी घनसार उदारे, गोत्र तीर्थंकर बांधै ।। पू० ॥ १ ॥ आठमी पूजा अगर सेल्हारस, लावे जिन तनु रागे। धार कपूर भाव धन वरपत, सामेरी मति जाग ॥ पू० ॥२॥
॥ नवमी वज, पूजा ॥ । - - - ॥दोहा॥ .
मोहन- ध्वज घर मस्तके, सहव गीत समूल । दीजै तीन प्रदक्षिणा, नवमी पूज अमूल ।।
. ॥ राग मेघ गोडी वस्तु छन्द ॥ ।
सहस जोयण सहस जोयण हेममय दण्ड ! युतपताक - पचे वरण, घुम घुमन्त धूधरी बाजे । मृदु समीर लहके
गयण, जाण कुमति, दल सयल भाजै ॥ सुरपति जिम विरवे - धजा ए, नरमी पूज सुरंग ॥ तिण पर श्रावक । ध्वज वहन, आपै दान अभंग ॥१॥ , - ॥ राग नट्टनारायण ।।
-जिनराजको ध्वज। मोहना, , वन मोहना रे ध्वज मोहना || जि० ॥ मोहन सुगुरु अधिवासियो, करि पच