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________________ ७२" वृहत् पूजा संग्रह प्रमार्जित, करत पखाल शुचिधार वनकी हो। न्हवण प्रथम निजवृजिन पुलावत, पंककु वरप जैसे घन की हो ॥पू०॥२॥ तरणि तारण भवसिंधु तरणकी, मंजरी संपदफल वरधनकी । शिवपुर पन्थ दिखावण दीपी, धूमरी आपद वेल मरदनकी हो ॥ पू० ॥ ३ ॥ सकल कुशल रंग मिल्योरी सुमति संग, जागी सुदशा शुभ मेरे दिनकी । कहे साधुकीरत सारंग भरि करताँ, आस फली मेरे मनकी हो ॥ पू० ॥४॥ ॥ द्वितीया विलेपन पूजा ॥ ॥राग रामगिरी ॥ गात्र लूहे जिन मनरंगसु हो देवा ॥ गा० ॥ सखर सुधूपित वाससु हारे देवा वाससु । गंध कसायसु मेलिये, नन्दन चन्दन चन्द मेलीये रे देवा ॥१॥२०॥ मांहे मृगमद कुकम भेलीये, कर लीये रमणपिंगाणी कचोलीये ॥२॥ पग जानु कर खंधे सिरे रे देवा, भाल कण्ठ उर उदरंतरे। दुख हरे हारे देवा सुख करे, तिलक नवे अङ्ग कीजिये ॥ ३॥ दूजी पूजा अनुसरे श्रावक, हरि विरचे जिम सुरगिरे । तिम करे जिणपर जन मन रंजीये ॥ ४ ॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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