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________________ ( छ ) के विरोधी वातावरण को शान्त बना दीक्षा ग्रहण की। उस समय इनकी दीक्षा का सर्वाधिक श्रेय मिला इनकी जननी रूपादेवी को । प्राणप्रिय पोतीकी दीक्षासे दादाजीके मोह को ठेस लगी। जिसकी अभिव्यक्ति दीक्षा जुलून में प्रत्यक्ष प्रकट हो गयी, मोह मृढ दादाजी ने पोती को घोड़े पर से उतार लिया, जन समूह हलचल मच गयो पर आप न रोई, न चिल्लाई, न अन्य कोई प्रतिक्रिया को, अपितु शान्त भाव से उतर कर दादाजी के साथ हो ली और फिर अपने धैर्य से उन्हें समझाया जो उनकी समझदारी गंभीरता व विचक्षण बुद्धि का परिचायक है । मैं दीक्षा से पूर्व अन्य घटनाओं से इनके अदम्य उत्साद शान्त गंभीरता व धैर्य का दर्शन हमे स्थान-स्थान पर होता है। दीक्षा से पूर्व आपको दादाजी ने जिन दर्शन बंचित रमा तो भी आपने अपनी बाल सुलभ चेष्टा का परिचय न देते हुए शान्ति से अन्न पानी के विना समय व्यतीत किया और अपना दृढ संकल्प बताते हुए कहा कि जिन दर्शन करने पर हो मैं कुछ गो । दीक्षा के सदर्भ मे -- जब उन्हें न्यायाधीश के पास ले जाया गया तो उन्होंने अपनी पूर्ण शक्ति का प्रयोग करते हुए उन्हें धमकाया, बन्दूक दिसाते हुए मृत्यु-भय बताया। आपमे निहित दैविक शक्ति बोल उठी एक दिन सभी को मरना है, मरने से क्या डर ? प्रभावित हो न्यायाधीश ने कहा ये वाला किमी की बहकायी हुई दीक्षा नहीं ले रही यह तो वास्तव में इम जीवन के अनुरूप हो लग रही है ।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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