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________________ ] ६२ ] ॥ पूजा ढाल श्रीपालनारासनी देशी ॥ देश विरति ने सर्व विरति जे, गृहीयति ने अभिराम । ते चारित्र जगत जयवंत, कीजे तास प्रणाम रे ॥भ० ३६॥ तृण परे जे षट् खण्ड सुख छंडी, चक्रवर्तिपण वरियो । ते चारित्र अखय सुखकारण, तेमें मन माहे धरियोरे।भ०३७ हुआ रंकपण जेह आदरी, पूजित इंद नरिंदें । अशरण शरण चरण ते चंद, पूयु ज्ञान आनन्दे रे भ०३८ बार मास पर्याये जेहने, अनुत्तर सुख अतिक्रमिये । शुक्ल शुक्ल अभिजात्यते उपरे,ते चारित्र ने नमियेरे ।म०३६ चयते आठ करमनो संचय, रिक्त करे जे तेह । चारित्र नाम निरुक्त भाष्यु, ते वंद्गुण गेह रे भ० ४० ॥ ढाल॥ जाण चारित्र ते आतमा, निज स्वभावमा रमतो रे । लेश्या शुद्ध अलंकर्यो, मोह वने नवि भमतो रे ।वीर० ।। ॥श्री चारित्र पद काव्यम् ॥ सुसंवरं मोह निरोधसारं, पञ्चप्पयारं विगयाइयारं । मूलोत्तराणेग गुणं पवित्तं, पालेहनिच्चंपिठ्ठसच्चरित्तं ॥६॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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