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________________ [ ५२ ] ॥ उल्लालो ॥ जे रम्या शुद्ध स्वरूप रमणे, देह निर्मम निर्मदा | अभ्यासी सदा || काउसम्म मुद्रा धीर आसन, ध्यान तप तेज दीपे कर्म झोपे, नैव छीपे पर भणी । निराज करुणासिंधु त्रिभुवन, बंधु प्रणमं हित भणी ॥२॥ || पूजा ढाल श्रीपालनारासनी देशी ॥ जिम तरुफूले भ्रमरो बेसे, पीडा तस न उपावे || लेई रस आतम संतोषे, तिम मुनि गोचरी जावेरे ॥ भ० २१| पंचेंद्रिीने कपाय निरुधे, पटकायक प्रतिपाल || संयम सतर प्रकारे आराधे, वंदू तेह दयाल रे ॥ भ० २२ ॥ अढार सहस शीलांगना धोरी, अचल आचार चरित्र । अनि महंत जयणा युत बंदी, कीजे जनम पवित्र रे | भ०२३ नवविध ब्रह्म गुप्ति जे पाले, बारे विध तप शुरा । हवा मुनि नमिये जो प्रगटे, पूरब पुण्य अंकुरा रे | भ०२४ सोना तणी परे परीक्षा दीसे, दिन-दिन चढ़ते वाने । संजम खप करता मुनि नमिये, देश काल अनुमाने रे । भ०२५ || ढाल || अप्रमत्त जे नित रहे, नवि हरषे नवि सोचे रे । साधु सुधा ते आतमा, युं मूंडे स्युं लोचे रे ॥ वीर० ६ ॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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