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________________ [ ४३ ] ॥ ढाल रूपातीत स्वभाव जे, केवल दसण नाणी रे। ते ध्यावा निज आतमा, होये सिद्ध गुण खाणी रे ॥१॥ ॥ वीर जिनेसर उपदेशे। ॥ श्री सिद्धपद काव्यम् इन्द्रवज्रावृत्तम् ॥ दुछुट्टकम्भावरण पमुक्के, अनंतनाणाइ सिरि चउक्के । सम्मग लोयग्ग पयप्प सिद्ध, माएह निच्चपि समत्त सिद्ध। ॥ काव्यम् द्र तविलंबित वृत्तम् ॥ विमल केवल भासन भास्कर, __ जगति जन्तु महोदय कारणम् । जिनवर बहुमान जलौघता, शुचि मनाः स्नपयामि विशुद्धये ॥२॥ मत्र-ॐ ही अहं परमात्मने, अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये, जन्म-जरा - मृत्यु - निवारणाय, श्रीसिद्धाय, पंचामृतंचन्दन-पुष्प-धूप-दीपं-अक्षतान् - नैवेद्य - फलं - वस्त्रं-वासं तापमाना।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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