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________________ [ ४१ ] निराकार साकार भावे महंता, भजो ते प्रमोदे सदासिद्ध सन्ता ॥२॥ करी आठ कर्म क्षय पार पाम्या, जरा जन्म मरणादि भय जेणे वाम्या । निरावरण जे आत्म रूपे प्रसिद्धा, या पार पामी सदा सिद्धबुद्धा ||३|| त्रिभागो न देहावगाहात्मदेशा, रथा ज्ञानमय जातिवर्णादि लेशा । सदानन्द सौख्याश्रिताज्योतिरूपा, अनावाध अपुनर्भवादि स्वरूपा ||४|| || ढाल उल्लालानी देशी ॥ सकल करम मल क्षय करी, पूरण शुद्ध स्वरूपोजी । अथ प्रभुतामयी, आतम संपत भूपोजी ॥ १ ॥ ॥ उल्लालो || जे भूप आतम सहज संपति, शक्ति व्यक्ति पर्ण करी । स्वद्रय क्षेत्र स्वकाल भावे, गुण अनन्वा आदरी । स्वस्वभाव गुण पर्याय परिणति, मिद्ध साधन परभणी । मुनिराज मानम हंस समन, नमो सिद्ध महागुणी ॥२॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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