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________________ अन्तराय कर्म निवारण पूजा ४७६ ताक ताक कर उपाया ॥ पू० ॥५॥ सागर कोडा कोडी तीस, बन्ध उत्कृष्ट कहे जगदीश । गुरुगम आगम सार, कर विवेक विचार हो अमाया ॥ पू० ॥६॥ दश गुणठाणा तक बन्धे, सत्तोदय बारह सन्धे । अन्त क्षायिक भाष, पुरुषार्थ प्रभाव जो जमाया ॥ पू० ॥ ७ ॥ हरि कवीन्द्र अन्तराय तोडो, आतम से आत्म जोडो। लन्धि पच प्रयोग, भम भाव वियोग सुख पाया | पू० ॥ ८॥ ॥ काव्यम् ॥ प्राज्याज्य निर्मित सुधा मधुर प्रचारैः । ___ मन्त्र-ॐ ही श्री अहं परमात्मने । अन्तराय कर्म समूलोच्छेदाय श्री वीर जिनेन्द्राय नैवेद्य यजामहे स्वाहा । || अष्टम फल पूजा ॥ ॥दोहा॥ निज पूरन कृत करम फल, दुख भी हो सुख रूप । फल पूजा प्रभु की करो, फल मत चाहो चूप ॥१॥ प्रभु पूजा फल की कथा, कौन कहे विचार । यहां वहां चारों तरफ, हो सुख अपरंपार |॥ २॥ (वर्ज-मत मान परो अपमान करो जीवन जल वह जायगा) प्रभु पूजा करो, प्रभु पूजा करो, आया विघन मिट
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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