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________________ आठवें दिन अन्तराय कर्म निवारण पूजा पढ़ावे || अन्वराय कर्म निवारण पूजा ॥ [ प्रारम्भ में मंगल पीठिका के दोहे पहले दिन की पूजा (ज्ञानावरणीय कर्म निवारण पूजा ) से देखकर बोलें। प्रति पूजा में काव्य भी पहले दिन की पूजा के समान वोल्ने होंगे। मंत्र में कर्म नाम बदल कर बोलें । ] मंगल पीठिका दोहा पूर्ववत् ॥ प्रथम जल पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ भव जल तिरना हो यदि, जल पूजा लो धार । जल: तीर्थ जनता तिरे, तीर्थ तारणहार ॥१॥ द्रव्य भाव दो तीर्थ हैं, द्रव्यालम्बी भाव । तीर्थ मेटो भाव से, परमातम पद दाव || २ ||
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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