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________________ ૪૪ बृहत् पूजा-संग्रह ॥ काव्यम् || सम्पूर्ण सिद्धि शिव मार्ग सुदर्शनाय० । मन्त्र — ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह परमात्मने गोत्र कर्म समूलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय दीपकं यजामहे स्वाहा । ॥ षष्ठम अक्षत पूजा !! ॥ दोहा ॥ भारी मूसल मार से, छिल जावे सब अंग । तब अक्षत संसार में, पाता है प्रभु संग ॥१॥ प्रभु संगी अक्षत पर्ने, अक्षय सुख भण्डार । अक्षत पूजा में भरो, यही भाव सुविचार ||२| ( तर्ज - तेरी सुमतिनाथ जय हो ) अक्षत पूजा प्रभु की करते, अक्षय सुख भण्डार होता । पूजा परमाधार प्रभु की, कर्ताजन भव पार होता || अक्षय० || ढेर || अक्षत गुण अधिकारी जन का, जीवन जय जयकार होता || अक्षप० || १ || पढ़े पढ़ावे जिन आगम को, निज आतम स्वीकार होता || अक्षय० ॥ २ ॥ निज पर आतम को स्वीकारा, तो हिंसा प्रतिकार होता || अक्षय० || ३ || आतम पथके अनुशासन में, गुण थानक विस्तार होता || अक्षय० ॥ ४ ॥ षड् दर्शन खण्डन मण्डन से, अक्षत गुण अविकार होता || अक्षय० ॥ ५ ॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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