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________________ वृहत् पूजा-संग्रह ॥ तृतीय पुष्प पूजा ॥ ॥दोहा॥ कांटों में जीवन पला, पाया पर्ण विकास । इन फूलों का देखलो, सौरम सुन्दर हास ॥१॥ गुण में बँध कर फूल सब, हो जाते हैं हार । प्रम पजा से आप भी, पाओ यह अधिकार ॥२॥ (तर्ज-जमुनाजी में खेलें हरि राम लला०) फूलों से पूजो भाव भरो, जीवन में पूर्ण विकास करो ॥ फू० ॥ टेर ॥ कांटों में जीवन पलता है, कांटों का दुख मनमें न धरो ॥ फू० ॥१॥ कलियाँ खिल करके फूल वने, खिलना सीखो मन मोद अरो ॥ फू० ॥ २ ॥ रेशे रेशेमें सौरभ है, गुण सौरभ का विस्तार करो ॥ फू० ॥ ३ ॥ गुण में बँध फूल ये हार बने, जन हार वनो वर विजय बरो॥ फु० ॥४॥ भौंरों को ये रस देते हैं, जीवन रस दान विधान भरो॥ फू० ॥ ५॥ सब ठौर फूल शोभा पाते, पाओ शोभा वह काम करो ॥ फू० ॥६॥ उत्तम कुल फूल को जग चाहे, उत्तम कुल सीमा में विचरो ॥ फू० ॥ ७ ॥ हरि कवीन्द्र जीवन कुसुम कली, आतम अर्पण करते न डरो ॥ फू० ॥ ८ ॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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