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________________ [ २३ ] ॥ ढाल- पूर्ववत् ॥७॥ एमपमणन्तिवण, भुवणजोईसरा । देव वैमाणिया, भत्ति धम्मायरा ॥ केविकप्पट्ठिया, केविमित्ताणुगा। केवि वररमणि, वयणेण अई उच्छगा || | वस्तु छन्दः ॥ तत्थ अन्य-तत्थ अच्चुय, इन्द आदेश । कर जोडी सवि देवगण, लैडकलश आदेश पामिय || अद्भुत रूप सरूप-जुय, कवणएह पुच्छन्ति सामिय ।। ॥दोहा॥ इन्द्र कहे जगतारणो, पारग अम्ह परमेस । नायक दायक धम्मनिहि, करिये तसु अभिषेक ||८|| || ढाल ८॥ [राग प्रभात भैरव (प्रभाती ) तर्ज तीर्थ कमल दल उदक भरोने-पुष्कर सागर आवे] पूर्ण कलश शुचि उदफनी धारा, जिनपर अंगे नामे । आतम निर्मल भाव करन्ता, बघते शुभ परिणामे || अच्चपादिक सुरपति मज्जन, लोकपाल लोकान्त । सामानिक इन्द्राणी पाहा, इम अमिपेक करन्त ॥८॥१॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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