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________________ ४५४ वृहत् पूजा-संग्रह उपाया, हांरे पाया दुख भार ॥ वी० ॥ ६ ॥ आज शुभोदय हो गया प्रभु सारी, हांरे पाया दर्शन जय जयकारी | हारे भव साया दूर निवारी, हारे निश्चय सितार || बी० || ७ || हरि कवीन्द्रों ने सदा गुण गाया, हारे जिन शासन सुखद सवाया । हारे योगावंचक विधि पाया, हांरे दूर कर्म विकार || वी० ॥ ८ ॥ || काव्यम् || प्राज्याज्य निर्मित सुधा मधर प्रचारै० । सन्त्र — ॐ ह्रीं श्रीं जई परमात्मने नाम कर्म समूलोच्छेदाय श्री वीर जिनेन्द्राय नैवेद्य' यजामहे स्वाहा | ॥ अष्टम फल पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ भव फल शिव फल जानकर, विशद विवेक विचार | प्रभु की फल पूजा करो, पाओ शिव फल सार ||१|| कर्म योग संसार फल, शिवफल धर्म विधान | धर्म मुख्य पद जगत में, सेटो श्री भगवान ॥२॥ ( तर्ज-पास जिनेसर पूजियें रे तीन भुवन सिरताज सलूणा ) सुख दुख फल संसार में रे, कर्म उदय अनुसार सलोना | पुण्ये सुख दुख पाप से रे, पुण्य करो प्रचार
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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