SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 443
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नाम कर्म निवारण पूजा प्रभु चरणे लय लावे रे। त्रस दश के परमातम दीपक, दिव्य ज्योति प्रकटावे रे ।। दी० ॥ ८ ॥ ॥ काव्यम् । सम्पूर्ण सिद्धि शिव मार्ग सुदर्शनाय० । मन्त्र-ॐ ही श्री अहं परमात्मने नाम कर्म समूलोच्छेदाय श्रीगीर जिनेन्द्राय दीपकं यजामहे स्वाहा । ॥ षष्ठम अक्षत पूजा ॥ ॥दोहा॥ आप अरूपी आतमा, अक्षय गुण भण्डार । नाम करम रूपी हुआ, सक्षतपद आधार ॥१॥ सक्षत पद दूरी करण, अक्षत पूज विचार । प्रभु अक्षत पद योगते, अक्षत पद अधिकार ॥२॥ (तर्ज-श्री संभव जिन राजजी रे, ताहरु अकल स्वरूप० ) अक्षत पूजा कीजिये रे, अक्षय पद अधिकार । जिनवर जय बोलो, बोलो बोलो वारवार || जि० ॥ टेर ॥ साधारण गुण जीव का रे, जानो भाव अरूप ।। जि० ॥ साधारण गुण रोकता रे, नाम अघाति सरूप ॥ जि० ॥१॥ पुद्गल पाकी नाम की रे, प्रकृति के संयोग ।। जि० ॥ काम अनादि आवमा रे, वर्ण गध रस भोग ॥ जि० ॥२॥ कर्म सभी जड़ मूर्त हैं रे, पर नहीं दीखें खास ॥ जि०॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy