SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 437
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नाम कर्म निवारण पूजा ४४५ || काव्यम् || लोकँपणति तृष्णोदय वारणाय० । मन्त्र - ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह परमात्मने नाम कर्म .. समूलोच्छेदाय श्री वीर जिनेन्द्राय जलं यजामहे स्वाहा । ॥ द्वितीय चन्दन पूजा || ॥ दोहा ॥ मलयाचल चन्दन सरस, क्षेत्र विशेषित भाव । प्रभु पद पावन क्षेत्र में, प्रकटे पुण्य प्रभाव ॥१॥ चन्दन गुण सन्ताप हर, हैं प्रभु आप विशेष । चन्दन से पूजा करो, मिटें करम के क्लेश ||२|| ( तर्ज - अवधू सो योगी गुरु मेरा - आशावरी ) चन्दन पूजा करियें प्रभु की चन्दन पूजा करियें } पाप ताप परिहरियें प्रभु की चन्दन पूजा करियें || टेर || नाम करम की पिण्ड प्रकृतियाँ, चौदह उत्तर जानो । पैंसठ होती आतम अभिमुख, कर आतम पहिचानो || प्र० ॥ १ ॥ बन्धन पाँच कहे पनरा भी, सघाउन सहयोगी । वीस प्रकृतियाँ तन अन्तर्गत, समझें आतम योगी ॥ प्र० ॥ २ ॥ वर्णादिक भी मूल चार हैं, उत्तर वीस वताइ । कर्म विचार समास किया यों, सोला वीस घटाई ॥ प्र० || ३ || हैं प्रत्येक प्रकृतियाँ अड्डा, वीस विशेष प्रकारा ।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy