SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 432
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४० वृहत् पूजा-संग्रह . हो भन्यातमा सम्यग्दर्शन के पाते संस्कार ॥ हो पर० ॥ ४ ॥ कचरा देव विमान का, हमें मिले जो आज । तो दारिद्रय रहे नहीं, सुर सम्पति अन्दाज। हो देवता प्रभु पूजें पूजा हित सुख कार । हो पर० ॥ ५ ॥ कम से कम देवायुका, वर्षे सहस दश मान। ज्यादा से ज्यादा कहा, तेतीस सागर जान । हो अन्त समये भोगी सुर सब भोगे दुःख मार ॥ हो पर० ॥६॥ अविरति मिट जाये मिले, हमें मोक्ष अधिकार । नर भव हम पायें करें, निज आतम उद्धार। हो देवता सम्यग्दृष्टि यों करते सद्विचार ॥हो पर० ॥ ७॥ बन्ध सुरायु सात तक, उदय चार तक योग । ग्यारह गुनठाने रहा, सत्ता का संयोग। हो हरि कवीन्दर प्रभु भक्तों की बोले जयकार ॥ हो पर० ॥ ८ ॥ । काव्यम् ।। प्राज्याज्य निर्मित सुधा मधुर प्रचारैः मन्त्र-ॐ हीं श्रीं अहं परमात्मने.."आयुष्य कर्म समूलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय नैवेद्य यजामहे स्वाहा । ॥ अष्टम फल पूजा ॥ ॥दोहा॥ प्रभु पूजा का पुण्य फल, हित सुख क्षेम विशेष । फल पूजा प्रभु की करो, हित सुख मिले हमेश ॥१॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy