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________________ ४३२ बृहत् पूजा-संग्रह होता कर्मानुसार ॥ पूजो० ॥ ३ ॥ बाट निमित्तों से कटे, आयुष अपवर्तन नाम ॥ पूजो० ॥ इतर अनपवर्तन कहा, जो पाता पूर्ण विराम ॥ पूजो० ॥ ४ ॥ देव मनुज तिथंच में, आयु प्रकृति शुभ योग ॥ पूजो० ॥ नरक अशुभ आयुष्य का, हो अपने आप वियोग ॥ पूजो० ॥५॥ श्वांस न आयु हैं यहाँ, ये हेतु हेतुमद भाव ।। पूजो० ॥ प्रभु पूजा में श्वांस की, गति होती सहज सुभाव ॥ पूजो० ॥६॥ निश्चय नय घट बढ़ नहीं होती, घट बढ है नय व्यवहार ॥ पूजो० ॥ निश्चय वर व्यवहार उभयपद, जिन दर्शन चित धार ॥ पूजो०॥ ७ ॥ जिन दर्शन पाये बिना, यह आयुष्य यों ही जाय । हरि कवीन्द्र प्रभु दर्शने, हो आयु सफल सुखदाय ।। पूजो० ॥ ८॥ ॥ कान्यम् ॥ पापोपताप शसनाय महद् गुणाय० । मन्त्र-ॐ हीं श्रीं अहं परमात्मने ... आयुष्य कर्म समलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय चन्दनं यजामहे स्वाहा । ॥ तृतीय पुष्प पूजा ॥ ॥दोहा॥ अहं पद अधिकार में, पूजातिशय विचार। हृदय कमल अर्पण करो, तज दो विषय विकार ॥१॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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