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________________ तीसरे दिन वेदनीय कर्म निवारण पूजा पढ़ावे . ॥ वेदनीय कर्म निवारण पूजा ।। [प्रारम्भ में मंगल पीठिका के दोहे पहले दिन की पूजा (ज्ञानावरणीय कर्म निवारण पूजा) से देखकर बोले, और अन्त में कलश आठवें दिन की पूजा ( अन्तराय कर्म निवारण पूजा ) के अन्त में प्रकाशित कलश वोलें। प्रति पूजा में काव्य भी पहले दिन की पूजा के समान वोलने होंगे। मंत्र में कर्म नाम बदल कर बोलें।] मंगल पीठिका दोहा . पूर्ववत् ॥ प्रथम जल पूजा ॥ - दोहा ।। सुख दुख इस संसार में, होता कर्म विकार । समभावी हो भेट दो, पाओ पद अविकार ॥१॥ अविकारी भगवान हैं, - भक्ति भाव जल धार। पूनो:-पूजा से बनो, पूज्येश्वर अवतार ॥२॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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