SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 389
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दर्शनावरणीय कर्म निवारण पूजा ॥ तृतीय पुष्प पूजा || ॥ दोहा ॥ ३६३ 1 जीवन कुसुम विशेष को, प्रभु चरणे दो चाढ़ । आतम में परमात्म पद, दर्शन गुण हो गाढ़ || १ || कुसुम विकासी आतमा, कली कली खिल जाय । प्रभु दर्शन के योगतें, गुण सौरभ भर नाय ||२|| (तर्ज- चन्द्र प्रभु जिन चन्द्र नमो हितकारी रे० ) प्रभुपद कुसुम चढाओ, पुण्य बढ़ाओ रे नर चतुर सुजान । जीवन कुसुम कली विकसित हो जावे रे, सुजान ॥ टेर ॥ आँखों से प्रभुदर्शन चक्षु दर्शन रे, नर चतुर सुजान । प्रभुपद फरस हरस मन भरना भावे रे, सुजान ॥ प्र० ॥ १ ॥ प्रभु गुण रस निज रसना योगे गाओ रे, नर चतुर सुजान । गुण मुगन्ध जो पावे, बहु सुख पावे रे, सुजान ॥ प्र० ॥ २ ॥ प्रभु गुण कीर्तन श्रवण मनन लय लावे रे, नर चतुर सुजान | अचक्षु दर्शन यों पुण्य कमावे रे, सुजान ॥ प्र० || ३ || अवधि दर्शन सुरनर पशु भी पावे रे, नर चतुर सुजान । प्रभु दर्शन पा पावन पदवी भावे रे, सुजान ॥ प्र० ||४|| यो विकास होते जन केवल पाता रे, नर चतुर सुजान । भाग्यवान भगवान वही
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy