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________________ ३७४ वृहत् पूजा-संग्रह आठ आठ दिन कोजिये, यथाशक्ति तप सार । सरल अशठ भावे भविक, प्रकटे गुण अविकार ||७|| कर्म वृक्ष शाखा जहाँ, धाति अघाती आठ । कटते होवे ठाठ ||८|| उत्तर प्रकृति पत्र हैं, सुवरन सुन्दर कीजिये, तप कुठार वर भाव । ज्ञान सहित प्रभु पूजिये, प्रकटे पुण्य प्रभाव ॥६॥ पूजा कर्म विशेष से, कटता कर्म कलेश । कांटे से कांटा यथा, पूजा करो हमेश ||१०|| जल चन्दन कुसुमादिये, अष्ट द्रव्य विधियोग | प्रभु पूजा से होत हैं, भव भय भाव वियोग ॥११॥ ॥ प्रथम जल पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ जल रस अमृत भाव से, पूजा करो हमेश | रस अमृत प्रकटे मिटे, जीवन ताप कलेश ॥१॥ जीवन में जड़ता भरी, उसे बहा दो दूर | 'जल पूजा प्रभु की करो, पाओ सुख भरपूर ॥२॥ ( तर्ज आशावरी - अवधू सो जोगी गुरु मेरा ) अर्ह पद अधिकारी पूजो, शासन पति सुखकारी । महावीर उपकारी पूजो, परमातम पद धारी ॥० ॥ टेर ॥ a
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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