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________________ रल अय पूजा ३६५ । सम्यग चारित्र पद पूजा ।। ॥दोहा॥ आतम दर्शन प्रकट हो, आतम का ज्ञान । चरण आतमा के प्रति, मोक्ष मार्ग विज्ञान ॥ १ ॥ ये तीनों ही सत्य हैं, ये तीनों शिव रूप । तीनों सुन्दर भाव है, ओर सभी भवकूप ॥२॥ पर द्रव्यों की रमणता, जहाँ न होवे लेश ।। केवल आतम रमणता, रहे न होवे क्लेश ॥ ३॥ हिंसा हो न असत्य हो, हो न अदत्तादान । मैथुन ममता हो नही, व्रत ये पाच महान ॥४॥ सुव्रतधारी आतमा, स्वयं युद्ध अवतार। परमातम होवें सही, पूलो विधि विस्तार ॥ ५ ॥ (तर्ज फलींगडा-क्यों रलता संसार तीर्थ है तेरे तरने को) अशरण शरण सरूप चरण, पा भर वन भटको ना ।।टेर सम्यग्दर्शन ज्ञान सुलोचन, देस करो आतम आलोचन, घलो चाल जजाल जाल मे जीवन पटको ना ।। अ० ॥१॥ सुगुरु सुदेव सुधर्माराधो, आवम से परमातम साधो । हो परमातम आप पाप, दुर्गति में लटको ना || अ० ॥ २॥ देश सर्व चारित्र दुविध है, सामायिक आदि पच विध हैं। आराधक के लिये रहे फिर, करम को सटको ना ||३०||३||
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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