SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ 49 ] एहयूँ भलै - निपजावी जिनपद निर्मले || आउथे विन इक भवकरी - श्रद्धा संवेग ने थिर घरी ॥ २ ॥ निहाँ भी चविय लहे नर भव उदार भरत तिम ऐवतेज सार || महाविदेह विजय प्रधान मञ्क खण्डे अवतरे जिन निधान ॥ ४ ॥ ॥ ढाल २ ॥ भगवान के चामर ढाले। फिर हाथों में अद्भुत या कुसुमांजलि लेकर खड़ा रहना । पुण्ये सुपनाँए देखें, मन में हरख विशेषे । गजचर उज्वल सुन्दर-निर्मल वृषभ मनोहर || २ || निर्भय केसरी सिंह- लखमी अतीहि अबीह अनुपम फूलनी माला-निर्मल शशि सुकुमाल || २ || तेज तरणि अति दीपे, इन्द्रध्वजा जगजीपे पूरण कलश पडूर, पद्मसरोवर पूर ||३|| इग्यारमे रयणायर, देखे माताजी गुणसायर । वारमे भुवन विमान, तेरमे रतन निधान ॥४॥ अग्नि सिखा निरधूम | देखे माताजी अनूपम । हरखी रायने भासे, राजा अस्थ प्रकासे ||५|| जगपति जिनवर सुखकर, होस्ये पुत्र मनोहर । इन्द्रादिक जसु नमसे - सकल मनोरथ फलसे ||६||
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy