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________________ वृहत् पूजा-संग्रह पुण्य योग प्रभु दर्शन पायो, आतम गुण अधिकार ॥ पूजो० ।। हरि कवीन्द्र करो गुण कीर्तन, हो जावो भव पार ॥ पूजो० ॥ ५॥ || सम्यग् दर्शन पद पूजा || ॥दोहा॥ तत्त्वारथ श्रद्धान है, सम्यग्दर्शन भाव । वह प्रकटो मेरे लिये, प्रभु पद पुण्य प्रभाव ॥१॥ होती चित्त प्रसन्नता, प्रभु पद पूजा योग । पाउं गृण गाउं यहां, मिटे महा भव रोग ॥२॥ (तर्ज-अवधू सो जोगी गुरु मेरा आशावरी) प्रभु से करम भरम मिट जाय ॥ टेर ॥ काल अनादि उलटि गति मति, सुलटी सहज उपाय। चाह नहीं धन धाम धरा की, सेवा प्रभु की सुहाय ॥ प्र० ॥ १॥ सुरमणि सुरतरु अधिक प्रभु हैं, वांछित पद वरदाय । दूर दारिद्रय हुआ हुई मेरे, सेवा की यह आय ॥ प्र० ॥२॥ सम्यक मिश्र मिथ्या तीनों, मोहनी मूल विलाय । सम्यग्दर्शन पाया मिटते, दर्शन मोह अपाय ॥ प्र० ॥ ३॥ आतम रूप अनादि अपना, भूल रहा भरमाय । आज
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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