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________________ ३५२ वृहत् पूजा संग्रह विजय हो, वीर प्रभु की जय हो जय हो ||६|| मोक्ष भूमि पावापुर धन धन, जिससे ज्योति पाते जन जन । प्रवचन उनका प्रमाण नय हो, वीर प्रभु की जय हो जय हो ||७|| सुखसागर भगवान हमारे, ज्योतिर्मय जग के उजियारे । हरि कवीन्द्र विशेष विनय हो, वीर प्रभु की जय हो जय हो ॥ ८ ॥ ॥ काव्यं ॥ यो ऽकल्याणपदं ० ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह श्रीमहावीर स्वामिने जलादि अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा | ॥ कलश ॥ ॥ दोहा ॥ होता है निर्वाण जब, घड़ी न बढ़ती एक । वीर प्रभु फरमान से, इन्द्र किया विवेक || १ || (तर्ज- अवधु सो योगी गुरु मेरा - आशावारी ) प्रभुजी आप शरण हम आये || ढेर || प्रभु निर्वाण हुआ सुनते ही, गुरु गौतम दुख पाये । विलापात करते यों बोले, छोड़ हमें क्यों सिधाये ॥ प्र० ॥ १ ॥ जाना था तो दूर न करना था, हमको हे स्वामी । पूरी हो न सके ऐसी यह, पड़ी हमारे खामी ॥ प्र० || २ || गौतम
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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