SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५० वृत् पूजा-संग्रह विधि योग करे, कर्म खातमा हो जी ॥ ६० ॥ ३ ॥ शूलपाणि चण्डकोशिया हो जी, कांइ संगमसुर गोवाल, कान खीला भरे हो जी । सुर नर तिर्यच का सहे हो जी, कां प्रभु उपसर्ग महान, महातप आदरे हो जी ॥ ध० || ४ || महा अभिग्रह धारते हो जी, कोई चन्दना पुण्य प्रभाव, प्रभु पारणो करे हो जी । साधिक बारह वर्ष में हो जी, प्रभु छदमस्थ रहे अप्रमाद, नींद ने वोसिरे हो जी || ध० || ५ || वैशाख सुद दशमी दिने हो जी, कोई हस्तोत्तर शुभ योग, घाती कर्म मिट गये हो जी । केवल ज्ञान सुदर्शने हो जी, प्रभु देखें लोकालोक, अर्ह पद पाये हो जी || ६ || स्याद्वाद प्रवचन सुधा हो जी, पी समवशरण में जीव, अमरपथ पागये हो जी । गौतम गणधर आदि में हो जी, श्रीसंघ चतुर्विध थाप, तीरथपति होगये हो जी ॥ ध० ॥ ७ ॥ देश सरव व्रत साधना हो जी, कोई साधक साध्य विचार करें भवि आतमा हो जी । हरि कवीन्द्र करें वन्दना हो जी, जो जन जिन दर्शन आराध, बने परमातमा हो जी ॥ ध० ॥ ८ ॥ ॥ काव्यम् || यो कल्याणपदं० ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह श्रीमहावीर स्वामिने जलादि अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा | 1
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy