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________________ श्री पार्श्वनाथ पंचकल्याणक पूजा ३२६ सुख-सागर भगवान प्रभु परमातम पारसनाथ | हरि कवीन्द्र संयम पथ साथी, फार्ले मेरा हाथ ॥ सं० ॥ ८ ॥ ॥ शार्दूलविक्रीडितम् ॥ त्यक्त्वा राज्य रमां प्रियां सुपरमां देवासुरैर्वन्दिता, सम्बुद्धः स्वयमेव यः सह शतैः पुम्भिस्त्रिभिर्दीक्षितः । सम्यग्दर्शन शुद्धये सुविधिना सद्भाव सम्पादितैः, सद्रव्यैः प्रयजामहे प्रतिदिनं श्री पार्श्वनाथं जिनम् । ॐ ह्रीं श्रीं परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्म जग मृत्यु निवारणाय श्री पार्श्वजिननाथाय जलादि अष्ट द्रव्यं यजामहे स्वाहा | || चतुर्थ केवलज्ञान कल्याणक पूजा || ॥ दोहा ॥ ग्राम नगर पुर विचरते, श्री प्रभु पारसनाथ । आतम गुण आराधना करते सयम साथ ||१|| ( गजल तर्ज - विना प्रभु पास के देसे० ) निजातम ध्यान की महिमा, कहो क्या दूसरा जानें १ | सुधा पी ओर ने तो रस, कहो क्या दूसरा जार्ने १ || ढेर || परम योगी प्रभु पारस, विचरते योग मस्ती में । प्रभु की योग मस्ती को, कहो क्या दूसरा जाने ||
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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