SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 316
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१० बृहत् पूजा संग्रह ॥ १ ॥ व्यार निकायके सुरसुरी मिलके, त्रिगडो रचे अतिरंगे || अहो प्रभु० || २ || समवसरण में राजे प्रभुजी, देशना दे भवभंगे || अहो ० || ३ || साधु साधवी वैमानिक देवी, अग्निकूण उमंगे || अहो० ||४|| ज्योतिषि भवनपति व्यन्तर सुरी, रहे नैरित जिन संगे || अहो ० || ५ || वायव विदिशे एहिज देवो, जिनवाणी सुणे रंगे || अहो० ॥ ६ ॥ वैमानिकसुर मानव-स्त्रीजन, ईशान दिशिमें संगे || अहो० ॥ ७ ॥ वारपर्षदा जिनवाणीसुण, मगन हुवे मन रंगे || अहो० ॥ ८ ॥ गोघृत भरि मणिपात्र अनूपम, दीपक करो मन चंगे || अहो० ॥ & ॥ मंत्र — ॐ ह्रीं श्री पर० दीपकं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ ॥ षष्ठम अक्षत पूजा ॥ दोहा ॥ अक्षत अक्षत लेईने, स्वास्तिक रचो विशाल | ज्ञानादिकत्रण पुञ्ज थी, पामो मंगल माल ॥१॥ राजीमतीको छोड़के, नेमि चढ्या गिरनार । रथनेमि राजीमती, लीधो संयमभार ॥२॥ ॥ रागनी माड ॥ नेमिजिन पुजो तो सही, प्रभु रैवतगिरि सिणगार ।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy