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________________ ३०६ बृहत् पूजा-संग्रह पहिर खीरोदकं बांधि मुहकोशकं, धूपवाशित सदोत्तरीय सारं || हारे अ० स० || २ || गंगासिंध्वादिना खीरसागरतणा, तीर्थजल औषधी मिश्रकीजे ॥ हां० अ० मि० ॥ ३ ॥ आठ जातीतणा । कलश भरी सुरगणा स्नात्र प्रभुनी रचे सुर गिरीन्हे ॥ हांरे० अ० सु० ॥ ४ ॥ इम भविभावकरि शुद्ध समकित धरि जिनतणी पूजा करो चित्त धारी || हरे अ० चि० ||५|| मंत्र — ॐ ह्रीं श्रीपरमात्मने अनंतानंत ज्ञान शक्तये गिरिनार गिरो श्रीनेमि - जिनेन्द्राय जलं यजामहे स्वाहा || ॥ द्वितीय केसर चंदन पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ नेमिजिणंद दिणंदसम, शिवसुख तरुनोकंद । रेवतगिरिवर मंडणो, पूजनकरो अखंड ||१|| घसकेशर मृगमदवलि, बावनचन्दन संग | अम्बर घनसार मेलवी, करो विलेपन अंग ||२|| ॥ रागनी भैरवी ॥ विलेपन करिये, प्रभुजीके अंग ॥ वि० ॥ जिनवरको तनुं फरसन सेती, पामेजिन गुण संग || वि० ॥ १ ॥ पारस -
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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