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________________ २१२ बृहत् पूजा-संग्रह ॥ तृतीय दीक्षाकल्याणक पूजा ।। ॥दोहा॥ अवधि ज्ञानसे जानके, जन्म जिनेश्वरराय । रीति अनादि अनुसरी, दिशाकुमारी आय ॥१॥ उरध अधो चारो दिशा, आठ रुचक परमान । चउचउविदिशामध्यकी, घट पंचाशत५६ जान ॥२॥ करके निज निज कार्यको, क्रमसे सह परिवार ।। जिन जिनजननीको नमी, करती जय जयकार ॥३॥ आसन कंपे इन्द्रका, अबधिज्ञान विचार । जिन जन्मोत्सब कारणे, आवे जन्मागार ॥४॥ मात नमी प्रभुको ग्रही, गयो सुमेरु आप। इन्द्र सभी हाजर हुये, जिनवर पुण्य प्रताप ॥५॥ - (तर्ज ठमरी-लागी लान कहो कैसे छूटे०) प्रभु पूजन सुखकारा भविजन, भवजल पार उतारारे । प्रभु० ॥ अंचली ।। चउसठ सुरपति सुरगिरि ऊपर, करे अभिषेक उदारारे । इक अभिषेके कलश अड जाति, जानो चउसठ हजाररे ॥.प्र० ॥१॥ चंदन पुष्प आदि सब विधिसे, पूजन नाना प्रकारारे । आरात्रिक कर प्रभुके आगे, स्तोत्र पवित्र उचारारे ॥प्र० ॥ २ ॥ इम पूरण कर जन्म
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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