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________________ २८१ श्री शांतिनाथ पंचकल्याणक पूजा देशनिरति श्रावक साधे, निरंतर आतम गुण वाधे । मेधस्थ पौपध धारके, बैठो पौपधागार | जिनपर धर्म सुनावत साथी सुनते हृपे अपार । नमोनित जिननर अनगारी, जगतमें जिनपर जयकारी ||२|| कांपता पारापतर आके, गिरा गोदीर चक्कर साके । बोलता गदगद ३ नसानी, निशानी शरणागत प्रानी । पीछे ही भट झपट के, आयो पसी बाज । कथनी अपनी सबही सुनावन, लागो मेघरथ राज । कतर अरज करी जारी, जगतमें जिनपर जयकारी ॥ ३ ॥ कबूतर - शरणा तो ले लिया है चाहे मारो या उगारो ॥ अंचली० ॥ तुम धर्मके हो धोरी, सुनो अर्ज एक मोरी । न गुनाह कोई किया है, चाहे मारो या उगारो ॥ श० || १ || हो प्राणका भी जाना, आश्रितको नचाना | तुम धर्म कह दिया है, चाहे मारो या उगारो || श० ॥ २ ॥ राजा (तर्ज- पूजन तो हो रहा है ) - चस स धर्म मुहिया है चाहे मानी या न मानी १ 2 कबूतर । सोले मे । ३ इसके भरता ।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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