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________________ २७४ वृहत् पूजा संग्रह अवसर याद कराना। नमन करी आभूषण देई पहुँचा देव विमाना, सुरपति संमुख भावे कीना वज्रायुध गुणगाना | होवे गुणी गुणिजन गुण भारा || धन्य वज्रायुध अवतारा ||४|| इन्द्र कहे सुन सुरखर प्यारे, धन्य है वो जो समकित धारे, आप तरे औरोंको तारे, वज्रायुधमें गुण हैं अपारे । प्र० । क्षेमंकर जिन केवली होके होंगे तोरथ स्वामी, चक्री होगा तब वज्रायुध चक्ररत्नको पामी | पंचम भवमें पंचम चक्री शांतिनाथ अभिरामी, आतम लक्ष्मी तीर्थंकर पद सेवा आतमरामी । होगा वल्लभ हर्ष अपारा || धन्य वज्रायुध अवतारा ||५|| 1 ॥ दोहा ॥ ऋतु वसंत में एक दिन, जलक्रीडा के हेत । वज्रायुध वापी‍ गयो, अंतेऊर समेत ॥ १ ॥ दमितारि अरि पूर्वका देवर हुओ वहां आय । वज्रायुधको देखके पूर्व चैर मन लाय || २ || मारणकी इच्छा करी, सपरिवार कुमार | वापी ऊपर डारियो, पर्वत एक उखार ॥३॥ १ वापी - वाव - बौडी 1 २ दमितारी प्रतिवासुदेवका जीव चिरकाल संसार में परिभ्रमण करता हुआ इस समय विद्युद्दष्ट्र नाम का देवता हुआ था ।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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