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________________ वृहत् पूजा-संग्रह ॥ दोहा ॥ अष्टम भव जिन शांतिका, सुनिये चित्त लगाय । अवतार । अच्युतपति पद भोगके, अपराजित पूर्व विजय मंगलावती, रत्नसंचया पुरि क्षेमंकर नरपति, योग क्षेमके रत्नमाला राणी सती, तस कूखे पंदरमा १ सह वज्रके, चउद सुपन अवधार ॥ ३ ॥ राणी पूछे रायको नाथ कहो फल आप | होगा सुत चक्री तुझे वज्री २ सम परताप || ४ || जन्म समय सुत तातने, कियो उत्सव अभिराम । वज्र सुपनके स्वालसे, दियो वज्रायुध नाम ||५|| (तर्ज-सीया राम भजो मन मेरा ) । धन्य वज्रायुध अवतारा, जिने समकित हढ़तर धारा ॥ धन्य०॥ अंचली || यौवन वय वज्रायुध धारी, पाली सकल कला हुशियारी, मात पिता संबंधी विचारी, लक्ष्मीवती विवाही नारी || प्रभु० ॥ जीव अनंतवीर्यका व्यवके अच्युत कल्पसे आवे, लक्ष्मीवती कुक्षी सुक्तिमें मुक्ताफल सम थावे | सूचित सुन्दर स्वप्न अनुपम समय सुत फल पावे, १ - राणी रत्नमालाने वज्र सहित १५ स्वप्न देखे । २ वज्री - इन्द्र | २७२ सुखदाय || १ || नाम | धाम ॥२॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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