SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री शांतिनाथ पंचकल्याणक पूजा २६५ ( तर्ज पील्लू -- अथवा गिरिवर दर्शन विरला पावे ) जिनपर वचन जगत हितकारी, निज निज भाव करण अधिकारी || अ० || कर्माधीन जीव जग फिरता, नाना रूप धरत ससारी । कर्म रहित आतम निजरूपे, सत चित आनद रूप विहारी ॥ जिन० ॥ १॥ पूर्व विदेहे रमणी विजयमें, शुभ नामा नगरी शुभकारी । स्विमित सागर नृप राणी वसुन्धरा, कुख अमिततेजा अवतारी ॥ जिन० ॥२॥ गज१ वृपर चांदर सरोवर४ पूरण, देखे सुपने राणीने चारी । पूछा पतिको नृप कहे देवी, सुत होगा उत्तम हलधारीx || जिन० ||३|| पुत्र हुआ दिया नाम पिताने, अपराजित रूप लक्षण भारी । देखत दिलमें हर्ष मनावत, मात पिता सज्जन नर नारी ॥ जिन० ॥ ४॥ नाम अनुधरा दूसरी राणी देखत सुपना शयन मकारी । केसरी १ लक्ष्मी२ सूर्य३ कलश४ फुन, सागर५ रतन जलन ७ महोहारी || जिन० ||५|| पतिको कहती प्रेमसे राणी, सुपने देसे मात उदारी । क्या होगा फल नाथ कहे नृप, विष्णु सुत होगा नलकारी ॥ जिन० ॥६॥ स्वर्गसे जीव श्री विजयका व्यपके, आया गर्भ में पुण्य आधारी । समये पुत्र हुओ अति सुन्दर, नाम 1 * कंटो X ----
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy