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________________ ६ वृहत् पूजा-संग्रह (तर्ज-लेली लेली पुकारे वनमें ) । प्रभु अमितयशा फरमाना, सुन मणिकुंडली जगभाया। नहीं पार किसीने पाया, जिसने पाया उसने छिपाया ॥प्र०॥१॥ वीतशोक१ रत्नध्वज राजा, चक्रवर्ती गरीब निवाजा। कनक श्री हेमामालिनी रानी, सती शीलवती पतिमानी ॥०॥२॥ पुत्री कनकश्री कनकलता थी, एक दूसरी पद्मलता थी। हेममालिनी पुत्री पद्मा, लियो संयम बनी गुण सद्मा ॥ प्र० ॥३॥ दैवयोग एक एक दिन वेश्या, देखी आयी अशुभ मन लेश्या। बनू ऐसी तप परभावे, मरके देवी सुधर्मे थावे ॥०॥४॥ जीव कनकधी दान प्रभावे, वना मणिकुंडली तूं भावे । कनक पद्मलता इस भावे, इंदुषण विंदुषेण थावे ॥ प्र० ॥५॥ पद्माजीव वेश्या हुई भारत, करे निजपर सबको गारत, इंदुषेण बिंदुषेण भाई, करते हैं उस हेतु लड़ाई ॥ प्र० ॥६॥ प्रभु मुखसे सुनी यह बात, युद्ध रोकने आयो भ्रात। पूर्व भवकी मैं तुमरी माता, भगिनी गणिका वस धाता॥ १ पश्चिम पुष्करवरद्वीप शीतोदा नदी के दक्षिण किनारे सलिलावती नाम के विजयमें 'वीतशोक' नाम का नगर का राजा 'बल्लध्वज'।
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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