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________________ २५० वृहत् पूजा-संग्रह माता तिवारी | उपकारी । भवोदधि पार उतारी, प्रभु वाणी वदे सुखकारी ||१|| देश विरति अरु सर्व विरति दो धर्म कहे हितकारी । साधु साधवी श्राद्ध श्राविका थापे तीर्थ प्रभु चारी । रत्न त्रयके अधिकारी, प्रभुवाणी वदे सुखकारी ॥ २ ॥ नित्य प्रति अति सोग धरंति, मरुदेवी भरतजी साथ लिये वहां आए, देख मोह दियो जारी । -गये शिव माता पधारी, प्रभुवाणीं वदे सुखकारी ॥ ३ ॥ कच्छ महाकच्छ दो विना सघरे, तापस आए विचारी । प्रभु के चरणमें शरण ग्रहण करो, आतम निज लियो तारी । वारी जाउं चार हजारी, प्रभु वाणी वदे सुखकारी ॥ ४ ॥ - पुण्डरीक प्रमुखा प्रभुकीना, चउरासी गणधारी । आतम -लक्ष्मी प्रभुता प्रगटी, वल्लभ हर्ष अपारी । जयो जिनवर जयकारी, प्रभुवाणी व सुखकारी ॥५ ॥ ॥ काव्यम् मंत्रश्च पूर्ववत् ॥ श्री आदिजिन सर्वज्ञाय जलादिकं यजामहे स्वाहा ||४ || ॥ पंचम निर्वाण कल्याणक पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ द्वादशगुण जिनमें वसे, अतिशय जिन चउतीस । वाणी ரா नि ॥०॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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