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________________ २४८ वृहत् पूजा-संग्रह ॥ चतुर्थ केवलज्ञान कल्याणक पूजा || ॥ दोहा ॥ इस अवसर्पिणि कालमें हुए प्रथम अनगार । आदिनाथ जिन साथमें, कच्छ आदि परिवार ॥१॥ पृथ्वी तल पावन कियो, कीनो उग्र विहार । एक वरस ऋजु कारणे, मिलियो नहीं आहार ||२|| विचरते आए विभू, गजपुर नगर मकार | बाहुबलि सुत सोमप्रभ, करते राज्य उदार ॥३॥ भाग्यवान तस पुत्र है, श्री श्रेयांस कुमार | देख प्रभु निज पूर्व भव, जान्यो सब अधिकार ||४|| इक्षुरस प्रति लाभके, कीनो मारग दान | वरसी तपका पारणा, कियौ ऋषभ भगवान ||५|| ( तर्ज - धन धन वो जगमें नर नार ) धन धन श्री श्रेयांस कुमार प्रवृत्ति दान कराने वाले ॥ अं० ॥ शुद्ध चित्त वित्त दियो दान, शुद्ध पात्र ऋषभ भगवान । फल पायो जस नहीं मान, प्रभु जग तरन तरानेवाले ॥ धन० ॥ १ ॥ हुओ पंच दिव्य परकास, अक्षय तृतीया दिन खास । मिले जन श्रेयांस आवास, अनुमोदन फल पाने वाले || धन० ||२|| निर्दोष अन्न जल
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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