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________________ २३४ वृहत् पूजा-संग्रह अंचली ॥ द्रव्य भाव साप दो कहिये, पहला जग उपकारी । वीतराग दूजा सार्थप भत्र, अटवी पार उतारी रे ॥ ज० || १ || एक दिवस निशि चरम समयमें, सार्थप चिंता व्यापी । अति दुःखी है कौन सार्थमें, देऊ झट दुःख कापी रे ॥ ज० || २ || हा हा अन्न अभावे समजन, कंदमूल फल खावें । धर्मघोष सूरि आदि मुनि, हाथ जरा भी न लावे रे || ज० ॥ प्रात समय गुरु पासे आके, चरणे, सीस नमाने | हाथ जोड़ अपराध खसावे, सुनि देखी शुभ भावे रे || ज० || ४ || आतम लक्ष्मी संपद कारण, सुनि गण ध्यान में लीना । देख देख धन सार्थप आतम, वल्लभ हर्ष भरीनारे ॥ ज० ॥ ५ ॥ ॥ दोहा ॥ धर्मघोष गुण गण गणी, धर्मलाभ के साथ । उपदेशी शांत्वन करे, सार्थनाथ सुनिनाथ ॥ १ ॥ विनति कर सुनि रायको साथ हुआ धनसार । दोष रहित शुभ भावसे, देवे घृत आहार ॥ २ ॥ ( तर्ज - लेली लेली पुकारे वनमें ) धन्य दान देवे दातार, करे निज आतम उद्धार । दान सर्व गुण गुणों की खान, देवे जिनवर भी जस मान
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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