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________________ चोरत्र पूजा २२१ पट काय विराधनमें दुखदेव ॥ २ ॥ इङ्गालादिक करण पंचोत्तर दशविध कॅरावण सकल विधान, उदर भरण कर्मादान । इम सहु अनरथ करम अवर पिण दुखनी साणं, व्यर्थपणे मॅनमान्या छेदे पुन्य प्रधान ॥ ३ ॥ उणकर पूर्वे केड गया नर सकट धाम, व्रत ग्रहीने रहिये वन लहिये शिव सुख ठाम ए व्रत तणो भवोदधि तारण तरण प्रकाम, कुशल कला नित करतां प्रगटे अभिनव साम ॥ ४ ॥ -- Tren ॥ दोहा ॥ ● नवमी श्रीजिनराजनी, पूजा परम - विमलाक्षत भरि भाजने, भविजन करे ॥ राग पीलू ॥ 1 वर्ज -अन तो धारयो मोहि चहिये जिनदराय राम भरो० ) श्रीजिनवरजीकी सेना सारे, मो भवभय इस दूर निवारे || श्री० || | || तदुल बिमल सकल गुण मंडित, सहित दोपरहित उर धारे। कचन पात्र भरि जिन आगे सटित दोपरहित उर धारे। कंचन पात्र भरि जिन आगे ॐ हिंण विकया पर 'विपरीत विचार विधान स्यादिकरण रसग कीरादिक पाउन वान । T * # विलास । 1 प्रकाश ॥ t
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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