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________________ पण्डित कपूरचन्दजी कृत ॥ बारह व्रत पूजा॥ ।। प्रथम समकित व्रत दृढ़करण जल पूजा ।। ॥दोहा॥ व्रत वारे आदर करी, पूजा तेर विधान । आनन्दादिक संग्रही, सप्तम अंग प्रधान ॥ ॥ ढाल || ॥ राग सरपदो॥ (तर्ज-ज्योति सकल जग जागती हां रे अइयो जा.) ज्योति विमल जग झलहले हां रे अइयो झलहले ए शासनपति जिनचन्द, त्रिकरण प्रणमन करि नमू॥ वीर चरण अरविंद ।। वी० ॥१॥ न्हवण १ विलेपन २ वासनी ३ हां रे० मालं ४ दोवंच ५ धूवणियं ६, फूल ७, सुमंगल ८ तंदुला ६ ए ॥ हां रे० ॥ अमलं दप्पणंच १० नेवज्ज ११, ॥२॥ ध्वज १२ फलवृन्द १३ ए मेलिये, हां रे अ० ॥ पूजा त्रिदश प्रकार । व्रत ग्रहि अणुक्रम अरचीये, जगपति जगदाधार ॥३॥ शिवतरु सुख फल स्वादनो, हां
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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