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________________ अपि-मण्डल-पूजा १८५ ॥ राग गुंड मिश्रित भीम मल्हार ॥ (तर्ज-मेव वरस भरी कुसुम बादल करी) परमपद पूर्व गिरिराज परि उदय लहि, विजित परचंद्र दिनकर अनन्ता। चन्द्रप्रभु चन्द्रिका विमल केवल कला, कलित शोभित सदा जिन महन्ता ॥परम०॥१॥ कुमति मत तिमर भर हरिय पुन भूरि भवि, कुमुद सुख करिय गुणरयण दरिया । गहिर भवसिंधु तारण तरण तरणि गुण, धारि भव तारि जिनराज तरिया ॥परम पद०॥२॥ राखिये आज मेरी लाज जिनराज प्रभु, करण सुख चरण जिन शरण परीया। परम शिवचन्द्र पद पद्म मकरन्द रस, पान नित करण ततपर भरिया ।। परम पद० ॥३॥ ॥ कान्य ।। सलि० ॐ ही श्री प० श्रीमचन्द्रप्रभु जिने० जलं० ॥ ॥ नवम श्रीसुविधि जिन पूजा || ॥दोहा॥ सुविधि सुविधि समरण थकी, कामित फल प्रगटाय । अतिगहन ससार वन, बहुल अटन मिट जाय ॥
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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