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________________ पंचकल्याणक पूजा ॥दोहा ॥ अकल अगोचर अगमगम, सिद्ध भए सुविशुद्ध । परमातम प्रभु परमपद, चिदानंद अविरुद्ध ॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ (तर्ज-तेज तरणिमुस राजे) तेज तरणिसम राजे, प्रभुजीको ॥ ते० ॥ एक समय प्रभु ऊरध गतिकर, मुक्तिमहल सुविराजे ॥ प्र० ॥ ते० ॥१॥ सादि अनंत सदा शाश्वतवर, अनत महासुख छाजे। अचल अगोचर प्रभु अविनाशी, सिद्ध सरूप विराजे ॥०॥०॥२॥ निरुपाधिक निरुपम सुस प्रभुके, कहि न सके कविराजे । अजर अमर अक्षय अविकारी, सफलानंद सहाजे ॥ प्र० ॥ ३॥ सवत ओगणीसे तरोत्तर (१९१३), श्रावण शुदि पस राजे। श्रीजिनराजवणा गुण गाया, पंचमी दिवस समाजे ॥ प्र० ॥ ते. ॥ ४ ॥ श्रीविक्रमपुर नगर मनोहर, श्रीसघ सकल समाजे। पंच कल्याणक पूजा प्रभुकी, कीनो हित सुख काजे ॥ प्र० ते०॥५॥ श्रीसरतरगच्छ नायक लायक, युगप्रधान पद छाजे। जंगमगुरु भट्टारक पर थी, जिनसौभाग्य सुराजे
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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